आरबीआई ने कहा महंगाई को कम रखना है बड़ी चुनौती
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के उपगर्वनर सुबीर गोकर्ण ने कहा कि महंगाई को निम्न स्तर पर रखना बैंक के लिए बड़ी चुनौती है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति 30 जुलाई को समाप्त सप्ताह में एक हफ्ते पहले के 8.04 प्रतिशत के मुकाबले 1.86 प्रतिशत की छलांग लगाकर 9.90 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसके अलावा जून की मुद्रास्फीति 9.44 प्रतिशत दर्ज की गई है।
डा. गोकर्ण ने कहा कि महंगाई को काबू करना आरबीआई की प्राथमिकता है। इसको नियंत्रित करने के लिए आरबीआई लगातार सख्त मौद्रिक नीति अपना रहा है। इसके तहत मार्च 2010 से आरबीआई 11 बार नीतिगत दरों में वृद्धि की है।
जानकारों कहना है कि वैश्विक मंदी से उबरने में भारतीय अर्थव्यवस्था को समय लगेगा। मंदी से उबरने की प्रक्रिया धीमी होगी। हालांकि इस बार की मंदी और तेजी वर्ष 2008 की स्थिति के मुकाबले धीमी रहेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था में नकारात्मक प्रवत्तियां बनी हुई है। उच्च मुद्रास्फीति, भारतीय रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीतियां, सकल घरेलू उत्पाद की घटती विकास दर और वास्तविकता से अधिक मूल्यांकन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव रहेगा। इसके अलावा कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था का भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
लेकिन इन सब बातों के बाद आरबीआई और सरकार दोनों सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों और नेताओं, विधायकों/सांसदों का वेतन कम से कम 5 सालों के लिये 20 प्रतिशत घटा दे और किसी भी हालत में इस वेतन को बढाये नहीं तो मंहगाई पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। दूसरा इस कवायत से बचे पैसे से कालाबाजारियों/जमाखोरों पर सख्त कार्यवाही कर मूल्य को स्थितर कर दिया जाये तो बाकी की समस्या भी खत्म हो जायेगी हमेशा के लिये। कई देशों में ऐसा ही हो रहा है। वहां पर मंहगाई बढती ही नहीं है और वेतन भी कभी बढता ही नहीं है। सामान और उसकी क्वालीटी भी उमदा होती है। पूरे देश में एक दाम होते हैं। क्या हमारे देश की सरकार में है हिम्मत ऐसा करने की। मेरे 22 साल के पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं। अगर ऐसा हो जाता तो देश की जनता कभी मंहगाई और भ्रष्टाचार को रोती नहीं। हां, देश में एक समानता जरूर होती।
डा. गोकर्ण ने कहा कि महंगाई को काबू करना आरबीआई की प्राथमिकता है। इसको नियंत्रित करने के लिए आरबीआई लगातार सख्त मौद्रिक नीति अपना रहा है। इसके तहत मार्च 2010 से आरबीआई 11 बार नीतिगत दरों में वृद्धि की है।
जानकारों कहना है कि वैश्विक मंदी से उबरने में भारतीय अर्थव्यवस्था को समय लगेगा। मंदी से उबरने की प्रक्रिया धीमी होगी। हालांकि इस बार की मंदी और तेजी वर्ष 2008 की स्थिति के मुकाबले धीमी रहेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था में नकारात्मक प्रवत्तियां बनी हुई है। उच्च मुद्रास्फीति, भारतीय रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीतियां, सकल घरेलू उत्पाद की घटती विकास दर और वास्तविकता से अधिक मूल्यांकन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव रहेगा। इसके अलावा कमजोर वैश्विक अर्थव्यवस्था का भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
लेकिन इन सब बातों के बाद आरबीआई और सरकार दोनों सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारियों और नेताओं, विधायकों/सांसदों का वेतन कम से कम 5 सालों के लिये 20 प्रतिशत घटा दे और किसी भी हालत में इस वेतन को बढाये नहीं तो मंहगाई पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। दूसरा इस कवायत से बचे पैसे से कालाबाजारियों/जमाखोरों पर सख्त कार्यवाही कर मूल्य को स्थितर कर दिया जाये तो बाकी की समस्या भी खत्म हो जायेगी हमेशा के लिये। कई देशों में ऐसा ही हो रहा है। वहां पर मंहगाई बढती ही नहीं है और वेतन भी कभी बढता ही नहीं है। सामान और उसकी क्वालीटी भी उमदा होती है। पूरे देश में एक दाम होते हैं। क्या हमारे देश की सरकार में है हिम्मत ऐसा करने की। मेरे 22 साल के पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा तो कभी हुआ ही नहीं। अगर ऐसा हो जाता तो देश की जनता कभी मंहगाई और भ्रष्टाचार को रोती नहीं। हां, देश में एक समानता जरूर होती।