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पूरा नाम मय जाति लिखवाने में कैसी शर्मिंदगी?

सरकार जातियों को भी जनगणना में शामिल कर रही है। इस बात को लेकर काफी हायतोबा हो रही है लेकिन शायद यह सब सस्ता प्रचार पाने के लिये ही किया जा रहा हो। निंदा करने वाले नेताओं को ही लें तो सबसे पहले अपने चुनाव क्षेत्र में वे ही अपने कार्यकर्ताओं के साथ जातियों का हिसाब लगाते मिलेंगे चाहे वे किसी भी दल के क्यों न हों। स्थानीय जनता भी जातियों का हिसाब किताब लगाकर वहां के उम्मीदवार को देखती और जानती है। खैर, सोचने का तरीका अपना-अपना?
जब आम अवाम को अपना पूरा नाम लिखने में शर्म नहीं आती तो जनगणना में जाति बताने में क्यों आयेगी? जब हम पैनकार्ड, बैंक एकाउण्ट, स्कूल के रजिस्टर, जाति प्रमाण पत्र आदि पर और न जाने कहां-कहां पर अपने नाम के आगे जाति लगाते अथवा लगवाते है तब तो किसी को शर्मिंदा नहीं होना पड़ता तो फिर जनगणना और यूनिक कार्ड पर अपना पूरा नाम मय जाति के लिखवाने में क्यों शर्मिंदा होना पड़ रहा है?
आरक्षण लेने के लिये जातियां बताई जाती है और जनगणना में जाति बताने में शर्म आती हो तो ऐसे लोगों की सोच को घटिया सोच अथवा 21वीं सदी में भी 10वीं सदी की सोच रखने वाला ही माना जाना चाहिये। आज जो लोग जनगणना और यूनिक कार्ड के लिये जाति बताने अथवा पूछे जाने का विरोध कर रहे हैं जरा उनही के परिचय पत्रों जैसे पैन कार्ड, स्कूल/कॉलेज की मार्कशीट, स्कूल की टीसी, ड्राईविंग लाईसेंस, बिजली/पानी/टेलीफोन का बिल आदि देखेंगे तो सबसे पहले उनका पूरा नाम मय जाति के मिलेगा! अब इनसे पूछा जाये कि उन्होंने तब क्यों अपना पूरा नाम मय जाति के लिखा, तब कहां थे? इसही तरह जनगणना में भी अपना पूरा नाम मय जाति के लिखाने से वर्तमान में कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला! वर्तमान परिस्थितियों में हर कोई जानता है कि वह किस क्षेत्र, किस जाति, किस समाज आदि का है। यही नहीं स्थानीय स्तर पर होने वाले समारोह, सम्मेलन, मिटिंग, आमसभा आदि में पहले से ही जाति आधारित गणना की जाति रही है और वर्तमान में भी की जाती है।
हम सभी इस विरोध के नाटक को छोडें और जनगणना में अपना पूरा नाम मय जाति के लिखवायें। क्यों की हम सभी हर जगह अपना पूरा नाम मय जाति के ही लिखवाते आये हैं और यही हमारी पहचान भी है। तो जनगणना अथवा यूनिक कार्ड के लिये जाति लिखवाने अथवा पूरा नाम मय जाति लिखवाने में कैसी शर्मिंदगी या डर?
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