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तामझाम कुछ है नहीं और चले चेतावनी देने

हमने देश की आजादी के भाषण में सबसे पहिले राष्ट्रपति उसके बाद प्रधानमंत्री सहित विभिन्न प्रांतों के मुख्यमंत्री और अन्य राजनेताओं के भाषण/अभिभाषण सूने। इन का आम जनता ने अपने-अपने तरीके से इनके भाषण/अभिषाषण का अर्थ निकाला। एक जगह डॉ.मनमोहन सिंह ने पाकिस्तानी आतंकवाद पर भी बोला। क्या हमें यह नहीं पता कि हम अपने देश में तो आतंक पैदा कर रहें और दूसरे को धमका रहे हैं। जी हां, आज देश के पैंतीस प्रतिशत जिलों में माओवादियों/ नस्लवादियों/ नक्सलवादी/स्थानीय नागरिक सेना का राज चलता है, यह सही है कि यहां पर सरकारी शासन-प्रशासन भी है लेकिन किसी भी काम का नहीं है। आपको याद दिलादें उस ताजा घटना की जिसके कारण आम जनता में गहरी दहशत है वह राजस्थान के एक जिले से गायब हुए साठ विषफोटक पदार्थों से भरे ट्रकों की। जब सरकार इन को सुरक्षा नहीं दे पाई वह भी अपने देश में को हमें समझ में आ जाना चाहिये कि आम आदमी को यह राजनेता कुछ नहीं देने वाले हैं। सिर्फ विदेशी आतंकवाद का रोना रोकर अपना समय निकाल रहे हैं और जनता को भ्रमित कर रहें हैं।
देश की सेनाओं, अर्धसेनिक बलों, स्थानिय पुलिस बलों की आज स्थिति सरकार ने ऐसी बना दी है कि वे देश में पनप रहे उग्रवाद पर तो काबू पाने लायक है ही नहीं दूसरे दशों से क्या युद्ध लड़ेेंगे? हथियारों का मामला हो या आधुनिकरण अथवा अन्य सुविधाओं का मामला हो, सुरक्षा बलों के पास आज भी वही पुराने हथियार और गोलाबारूद है। इनके पास कोई आधुनिक प्रशिक्षण नहीं है। सब कुछ भगवान भरोसे है।
मंहगाई की बात करें तो एक बार शिला दीक्षित ने कहा था कि मंहगाई में इस लिये बढ़ोतरी हुई क्योंकि सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ गया। अब बजट बनाने वाले अर्थशास्त्रीयों को पूछा जाये कि क्या आवश्यकता है इन सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने की। तो जवाब होगा मंहगाई बढ़ गई है। हम पहिले भी कह चुके हैं कि इन सरकारी कर्मचारियों, सरकारी कम्पनी के कर्मचारियों, स्थानिय निकायों सहित अन्य निजी और सरकारी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने के बजाये इस पैसे से मंहगाई पर काबू पाया जा सकता है। इसका असर पूरे देश की जनता पर पड़ता है। वेतन बढ़ाने से केवल राजकीय कर्मचारियों को ही फायदा है न की देश की जनता को। लेकिन उसके बाद भी वेतन बढ़ा और आज हालात ये हैं कि मंहगाई बढ़ती ही जा रही है। जैसा सरकार में बैठे राजनेताओं और पूंजीपतियों ने सोचा वैसा ही किया।
अगर पिछले पंद्रह सालों को ही लें तो देश के हालातों से ऐसा लगेगा जैसे अफगानिस्तान, ईराक, लेबनान, जर्मन जैसे कई देशों में आतंकवाद के नाम पर ठीक इसही तरह के घटनाक्रम हुए हैं और अमरीका इनका अगुआ रहा है। यह घटनाक्रम उस स्थिति कि ओर हमें ले जा रहे हैं जो इन देशों को आज भुगतने पड़ रहे हैं आधी आबादी को निपटा दिया गया है। बाकी को भूखे मरने के लिये छोड़ दिया गया है। जिंदा बची आबादी को गुलामों कि जिंदगी जीने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है।
देश राजनेताओं और अगुवाओं के पूर्व और वर्तमान भाषणों की तुलना करें तो यह केवल भाषण ही थे इन पर कभी अमल ही नहीं हुआ। जो हुआ वह आम जनता के सामने ही है। आज के हालात यह बताते हैं कि अब हमें भी तैयार हो जाना चाहिये अमेरीका या ब्रिटेन का वापस गुलाम बनने के लिये। वो सब देखने के लिये जो ईराक की जनता ने हाल ही के दिनों में भुगता है। सरकारी गोदाम भरे होंगे, फसलें बम्पर होंगी लेकिन फिर भी भुखमरी होगी। अब भी आम जनता नहीं चेती तो इन सब से जल्द ही पाला पडऩा तो लाजमी है ही।
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