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जमीन किसी कि और बंटवारा कोई करे क्यों?

दोनों अम्बानी भाईयों की बात करें तो यह लगता है कि-जमीन किसी कि और बंटवारा कोई करे! याने कि सरकारी  अधिकार की वस्तुओं का कोई दूसरा और तीसरा मिल कर आपस में बंटवारा या समझौता कैसे कर सकता है? इस मामले में समझौता करने वालों पर भी तो कार्यवाही होनी चाहिये!
आज के रिलायन्स के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से जो बात सामने आई वह यही है और इस तरस के बंटवारे अथवा समझौते को माननीय न्यायालय ने मानने से इंकार भी किया है। अब सवाल सरकार का है कि वे क्या कार्यवाही करती हैं इस तरह के समझौते करने वालों पर।
यह बात तो तैय है कि इस गैस समझौता विवाद में दोनों ही भाइयों के समूह को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई है। विवाद तो अभी भी बना हुआ है सरकारी स्तर पर लेकिन पहले हम भी माननीय न्यायालय के आज के निर्णय को गौर से देखेंगे उसके बाद कोई ठोस निर्णय पर पहुंचेंगे।
बहर हाल स्टॉक मार्केट में तो एक बार फिर विदेशी और रिलायंस के नाम पर तोडफ़ोड़ चालू आहे! देखते रहें कि कमोडिटी की तरह इस में भी कितनी इनसाईडर ट्रेडिंग हुई है। बस कुछ इंतजार और..?
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