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भारत की बेरोजगारी की इन्हें चिंता क्यों नहीं है?

विदेशों में बढ़ रही बेरोजगारी की चिंता तो देश के नेताओं और राजनेताओं के साथ मार्केट आपरेटरों को हो रही है जबकि अभी तक कोई आंकड़े ही जारी नहीं हुए हैं? अब इनही से पूछा जाये कि भारत में रह कर भारत की बेरोजगारी की इन्हें चिंता क्यों नहीं है? तो यह लम्बे समय तक गायब ही नजर आयेंगे या फिर कोई नया मुद्दा उछाल कर इस मुद्दे को दबा दिया जायेगा। कारण साफ है देश के इन दुश्मनों जो कि देश के वफादार कहे जाते हैं का सारा दो नम्बर का पैसा भी तो विदेशों में ही जमा है। साफ है बयान दो और मंहगाई बढ़ाओ या रिपोर्ट की आड में दाम बढ़ाने की दहशत फैला कर कालाबाजारियों को पनाह देने का कार्यक्रम भी तो सरकारी स्तर पर ही चल रहा है। जिसे देश का हर नागरिक देख सुन रहा है और समझ रहा है। इस सबको ज्यादा नहीं समझें और देश के नागरिक बगावत नहीं करें इसके लिये अब महाराष्ट्रा में मराठी के नाम पर वापस बबाल चालू हो गया है। लोग इसे देखेंगे और इस नौटंकी से हुए देश के नुकसान को समझेंगे तब तक कोई नई नौटंकी चालू हो जायेगी। जो इससे बड़ी होगी। कहने का मतलब साफ है कार्यवाही करना तो दूर सरकारें इस तरह के मामलों को खुद ही हवा दे रही है। ताकि जनता का ध्यान बंटा रहे और पूजीपति, कालाबाजारी, जमाखोर आदि अपना काम करते रहें। रसोई गैस की देश में कोई कमी नहीं है हजारों गेलन गैस रोजाना कम्पनियां जला कर कम करतीं हैं। अगर स्टॉक करने की क्षमता बढ़ा कर इसे स्टॉक किया जाये और आम जनता को दिया जाये तो शायद देश में गैस के भाव एक सौ पचास रूपये से भी कम होंगे। लेकिन देश कि जनता ने जिन्हें चुना है वे ही आज जनता को लूटवा रहे हैं। चाहे वे किसी भी दल से क्यों न हों। यही लोग अंग्ररेजों की तरह जात, पात, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर जनता को लड़वा कर संगठित नहीं होने ने देना चाहते हैं। देश में बढ़ रही बेरोजगारी को आंकड़ों में हेराफरी कर सरकार स्वंय जनता को बेवकूफ बना रही है। वर्तमान हालात को बताने के बजाय सरकार 2004 के हालात बता रही है। जब मंहगाई कम थी। लेकिन आज आमदनी 2004 के मुकाबले कम है लेकिन मंहगाई उससे कहीं ज्यादा। साफ है मतदाताओं को नेताओं द्वारा बेवकुफ बनाने का यह नौटंकी भरा कार्यक्रम! आज के हालत हो आजादी के पहले के जमीदारों, सरमायेदारों और अंग्रेजों के अत्याचारों से भी बढ़ कर हैं। जहां पर आम जनता को तील-तील कर मरने पर विवश किया जा रहा है फिर भी नहीं मरे तो आतंक के नाम पर बम फोडना और दहशत फैलाना आदि-आदि?
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