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बाजार की असामान्य उठापटक के पिछे मीडिया, सलाहकारों, सटौरियों और निगरानी निकायों के अधिकारियों की मिलीभगत का अंदेशा ।
कहीं यह असामान्य उठापटक सत्ता परिवर्तन के लिये तो नहीं की जा रही है। जिसमें अफवाहों का भी सहारा लिया जा रहा है। इसे अमलिजामा पहनाने के लिये एक्सचेंज,निगरानी निकायों आदि के शामिल होने के अंदेशों को भी नहीं नकारा जा सकता है। मीडिया हाउसों की तो बात ही अलग है, बेचारे अपने शेयर्स में गतिविधियों के लिये भी तो इन्हीं को याद करते हैं, तभी तो इनके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसही लिये इनके शामिल होने का अंदाजा इनके प्रसारण से ही लगाया जा सकता है। जो निकाय 80 प्रतिशत गिराने और 100 प्रतिशत से अधिक तक एक्सचेंज में भाव बढाने की अनुमति सटोरियों को दे रहे हैं, शायद ही भारत के बाजारों में पहले कभी हुआ हो ? इस उठापटक के पिछे शामिल बडे अधिकारियों, पूंजीपतियों, सटोरियों, मीडिया हाउसों, नेताओं की मिलिभगत के चलते ही इसकी जांच करने की भी किसी जांच ऐजेंन्सी की हिम्मत नहीं है। आखिर जांच ऐजेन्सी रिपोर्ट भी तो इन्ही में से किसी को देगी ही, तब कार्यवाही तो दुर की बात इसे देखा भी जायेगा या नहीं राम जाने ? हां कुछ बाबालोगों ने कहना भी शुरू कर दिया है कि वे डरा नहीं रहे हैं। लेकिन करे क्या बेचारे आदत से मजबूर हैं। दबाव इतना की जबान पर रोक लगाते-लगाते भी मन की बात निकल ही जाती है, बेचारों से ! इतनी उठापटक होने के बाद भी निकायों के अधिकारी कार्यवाही का आश्वासन दें, तो साफ है, यह सब किसी न किसी रूप में सत्ता परिवर्तन से जुडा हुआ मामला भी हो सकता है। जिसके दबाव के चलते सरकार भी कार्यवाही करने कि हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। जब आश्वासन दिये जाऐं, जांच में समय लिया जाये, निगरानी की बात दोहराई जाये उसके बाद भी उठापटक जारी रहे तो क्या किया जाये। ऐसी स्थिति के बाद यह तो समझ आता ही है कि ऐसे निकायों, अधिकारियों की फिर आवश्यकता ही क्या है, क्यों करोडों रूपया हमारी मेहनत का सरकार इन पर खर्च कर रही है। यह जो कुछ हो रहा है वह तो इनके बिना भी हो सकता है। इससे पहले कि लाखों बेरोजगार या दिवालिया हों, इन निकायों को ही बन्द कर दिया जाना चाहिये। क्या इनके लिये भी किसी विदेशी निवेश की आवश्यकता होगी। वेसे भी भारत में 65 प्रतिशत से अधिक आबादी बेरोजगार है, दो-चार हजार और बढ जायेंगे तो क्या फर्क पडना है। निवेशकों को अब भी घाटा है तब भी घाटा.....? 3 फरवरी, 2009