अन्तरिम बजट याने चुनावी पोस्टर !
अन्तरिम बजट 2009-10 को अन्तिम बजट नहीं कहा जा सकता है। इस अन्तरिम बजट से यह तो जाहिर हो गया कि अब यह सरकार वापस नहीं आने वाली है, क्योंकि यह अन्तरिम बजट आने वाली सरकार के लिये सिरदर्द ही साबित होने वाला है। ऐसे में इसे चुनावी पोस्टर कहा जाये तो कोई बुराई नहीं है।
इस अन्तरिम बजट को पेश करते समय सारी समस्याओं के लिये विश्वव्यापी मंदी को जुम्मेदार ठहराया है। जबकि हमारे नियामकों और सटोरियों के बारे में तो सोचा ही नहीं, याने चुनावी चंदा तो यहां से ही आने वाला है। ग्रामीण रोजगार योजना को याद किया लेकिन बढती बेरोजगारी को रोकने के लिये कोई निर्णय नहीं ले पाये !
अब बात करें रक्षा बजट की तो पाकिस्तान को अपनी ताकत का अहसास दिलाना है और बताना है कि हमारे पास सुरक्षा के लिये पैसा है, चाहे देश में मंदी ही क्यों न हो, रक्षा बजट में बढौतरी की जानी ही थी, लेकिन जनता को राहत देने के लिये सरकार के पास पैसा ही नहीं है या कहें देना ही नही चाहते ? जोडतोड आदि तो अब चलेंगे ही, किसको फायदा, किसको घाटा, किसको कुछ भी नहीं आदि-आदि के साथ राजनैतिक गणित भी शामिल है। बाकी का दिमाग तो आपको भी लगाना चाहिये ना !
16 फरवरी, 2009