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बेच दो आरबीआई, सेबी, वित्तमंत्रालय को भी !

आईसीआईसीआई बैंक एक घोटाला है सीआरआर का ?

हां जी ? आपने सही पढा ! आईसीआईसीआई बैंक के दिवालीया होने के समाचार पहले भी आये थे जब सीआरआर में कमी की जाने वाली थी ? लोग भागे थे, पैसा निकालने के लिये ! शाखाओं में भीड, एटीएम जाम और नकद निकाले की सीमा तैय कर दी गई थी तथा चैक से पैसा ट्रांसफर की छुट थी। खाताधारकों में भागमभाग ? फिर वही सीआरआर कम डेढ प्रतिशत ! बैंक तो चाहेगा ही ना, ज्यादा से ज्यादा लोग पैसा निकालें, ताकि ब्याज वो भी डेढ प्रतिशत तो बचेगा ! एक जैसी घटना दो बार होना, इससे साफ है बैंक के प्रबन्धकों की सरकार और पूंजीपतियों से मिलीभगत ! पहले भी सीआरआर कम होने से ठीक पहले इस तरह की हरकत कर इस बैंक ने लोगों तो डराया बाद में खण्डन किया ! अब फिर वही कहानी और अफवाह का बाजार गरम है, फर्क है सीआरआर का जो इस बार ज्यादा कम हुई है। दिवालीया होने अथवा भारी आर्थिक हानि होने की अफवाह को 30 दिन से ज्यादा हो गये ! क्या कार्यवाही की इस बैंक के प्रबन्धकों ने सिवाय खण्डन करने के ? कहीं यह बैंक प्रबन्धकों की साजिश तो नहीं है ? ताकि भारी भरकम ब्याज बचाया जा सके ! सरकार ने भी सिवाय खण्डन के किया भी तो क्या ? क्योंकि मिलीभगत को सभी स्तर पर है। अगर मिलीभगत नहीं होती तो सख्ती के साथ निपटा जा सकता है, इस तरह की अफवाहों से, क्यों नहीं बरती जा रही सख्ती ? साफ है जितनी ताकतवर अफवाह उतना ही फायदा नौकरशाहों को और प्रबन्धकों सहित नेताओं को ? खण्डन के अलावा सरकार, आरबीआई, वित्तमंत्रालय, सेबी और एक्सचेंज बैचारे कर भी क्या सकते हैं ? करना है तो हमारे फण्डमेनेजरों को, जिन्होंने बैचारे आईसीआईसीआई बैंक के शेयर्स की कीमत को 100 प्रतिशत से ज्यादा तोड दिया ? मरे तो निवेशक, भागे तो आईसीआईसीआई बैंक के खातेदार ? बैंक या इससे जुडे किसी संस्थान को कोई नुकसान नहीं हुआ ! नुकसान हुआ आम निवेशको को ! शेयर मार्केट के उतार-चढाव को देखने वाली सेबी और सरकारी अमले को 100 प्रतिशत गिरावट तो दिखती ही नहीं है। शयद इन्हें विदेशी चश्में की आवश्यकता हो, क्यों की देश के कानूनों के अन्तर्गत बनी यह संस्था को देश के ही कानून याद नहीं, या इन कानूनों पर सरकारी अथवा बैंक के दबाव के चलते कार्यवाही नहीं करना चाहते हैं इस के नौकरशाह ? स्पष्ट है, आईसीआईसीआई बैंक प्रकरण में सरकारी लापरवाही, कानूनों की पालना में लापरवाही, सेबी जैसी संस्थाओं द्वारा बरती जा रही गम्भीर लापरवाही ! सेबी जैसी संस्था जब कार्यवाही करना ही नहीं चाहती है तो क्या आवश्यकता है इसकी, क्यों नहीं बन्द कर दिया जाये इसे और आरबीआई को क्योंकि यह निर्णय लेने और कार्यवाही करने लायक ही नहीं है तो ? इससे अच्छा होता मार्केट को बन्द कर दिया जाता, ताकि निवेशक तो बचे रहते इस देश के ! नहीं तो बन्द कर दो इस देश के वित्त मंत्रालय को भी, क्या आवश्यकता है इसकी जिसे पहले से पता होते हुये भी आम जनता को सावधान नहीं किया ना ही उनके निवेश करने पर रोक लगाई ? इस देश का वित्तमंत्रालय इस देश की जनता को ही बर्बाद करता हो तो इसे बन्द कर दिया जाना चाहिये ! नहीं तो वे दिन दूर नहीं जब जनता अपना कानून लागू करेगी और सरकार आपातकाल ? तब कहां जायेगे ये नौकरशह, नेता और इनके फायनेंसर वह चन्द पूंजीपति ? अभी भी समय है उन सटोरियों और आपरेटरों व अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का ! चुनाव तो आऐंगे और जाऐंगे जनता यहीं की है और यहीं पर रहेगी ! जब यहां का नागरिक अपना कानून लागू करेगा तो.......?
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