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22/10/2008

पहला समाचार विश्वबैंक को कर्जा देंगे-मनमोहन

दूसरा समाचार 50 करोड डालर कर्जा लेंगे-एनटीपीसी

यह है हमारा अर्थशास्त्र ? सस्ता देंगे और मंहगा लेंगे ! अब आप ही बतायें कि इन अर्थशास्त्रीयों को कौनसी कक्षा में होना चाहिये ? हम अपनी चीज को अपने देश कि आवश्यकता पुरी करने में नहीं लगा रहे हैं और दुसरे से मंहगा लेने की सोच रहे हैं। हमारा अर्थशास्त्र विदेशी मुद्रा बचाने के बजाये उसे नुकसान पहुंचाने की सोच रहा है। इस विदेशी अर्थशास्त्र से तो अच्छा है हमारा देशी तरीका जो हमें इस देश कि आवश्यकता के अनुरूप चलने के लिये प्रेरणा प्रदान करता है। इसे अगर राष्ट्र्द्रोह नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? या इसे कहेंगे अमानत में खयानत ? हमारे देश की बैंकों और फायनेंस कम्पनीयों को भी तो ऐसा करने के लिये कुछ करे अर्थशास्त्री महोदय ! बेचारी जनता को 28 से 35 प्रतिशत से अधिक में पीएल दे रही है। जनता को जमा पर दे रहे हैं अधिकतम 10 प्रतिशत तक। ये दोगला पन क्यो ? हमारी सरकार जनता को छोड कर दूसरों को फायदा क्यों पहुंचाना चाहती है ? इसही लिये तो कहते हैं सरकार और नौकरशाहों पर कोई कानून लागू नहीं होता, हां सरकार के बनाये कानून केवल आम जनता पर लागू होते हैं ?
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