15/10/2008
वाह भई वाह ! जेट से निकलेंगे कर्मचारी, वो भी मौखिक आदेश से, लिखित में बाद में देंगे ! मौखिक नोटिस भी 4 से 12 घंटे मात्र का, मतलब श्रम कानूनों का स्पष्ट उलंघन ? आखिर जेट भारत में कौन से कानूनों की पालना करना चाहती है। भारत के या ...? जिस देश में कानूनों की पालना कराने वाली सरकार के नेता ही पूंजीपतियों के आगे दूम दबा कर बैठे हों तो क्या उम्मीद की जाये। आम नागरिक ने कानून तोडा होता तो शायद सालों तक चप्पलें रगड रहा होता ! आर्थिक मंदी की आड में जिस तरह से जेट ने अपने कर्मचारियों को निकाला है, उसकी आड लेकर अन्य कम्पनीयां भी ऐसा ही करेंगी! क्योंकि कानून तोडने के लिये बढावा भी तो सरकार और उसके नौकरशाह ही दे रहे हैं। इससे तो अच्छा है, सभी बडी कम्पनीयों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाये। आर्थिक सहायता देने के बजाये तो यह उपाय सबसे अच्छा होगा। इस तरह की हरकतों से साफ पता चल रहा है कि हमारी सरकार और उसके नौकरशाह अर्थव्यवस्था की स्थिति को छुपा रहे हैं अथवा जानबूझ कर आर्थिक मंदी पैदा करना चाहते हैं। यही कारण है कि बडी कम्पनीयां, बडे पूंजीपति, सटोरिये, कालाबाजारिये सक्रिय हैं। हमारे नेताओं का बयान कि, हमारी हर गतिविधियों पर नजर है, हमारे कानून इन परिस्थितियों से निपटने के लिये सक्षम है। तो भई कौनसे कानून तोडने वाले लोगों पर नजर है आपकी, कौन से चश्में से नजर है आपकी और कब नजर आयेंगे ये कानून तोडने वाले श्रीमान जी ? ऐसे अर्थशास्त्र और पूंजीपतियों के आगे दुम दबा कर बैठे रहने से तो अच्छा है आपातकाल ही लगादो, छोड दो अपनी कुर्सी क्या करोगे स्वीस बैक में जमा पडे काली कमाई के खरबों डालरों का ? परेशान जनता को अगर पूंजीपति और सरकार सहायता नहीं दे सकती तो क्या आवश्यकता है ऐसे तामझाम की और इतने सारे नौकरशाहों की ? बेशर्म नेताओं के मुश्कराते चेहरों, बेशर्म नौकरशाहों और अर्थशास्त्रीयों को कब लज्जा आयेगी इन स्वार्थियों को और कितना लूटोगे आम जनता को ? कहीं जनता ने लूटना शुरू कर दिया तो फिर भूल जाना इस देश के कानून और संविधान को, तब मत याद दिलाना जनता को संविधान,कानून आदि ! अगर सरकार और उसके नौकरशाह कानूनों और संविधान की पालना नहीं कराना चाहते तो आम जनता से भी उन्हें उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। क्योंकि कहावत है लातों के भूत बातों से नहीं.....?
आम जनता को भी आजादी दो पूंजीपतियों की तरह लूटने की ?
वाह भई वाह ! जेट से निकलेंगे कर्मचारी, वो भी मौखिक आदेश से, लिखित में बाद में देंगे ! मौखिक नोटिस भी 4 से 12 घंटे मात्र का, मतलब श्रम कानूनों का स्पष्ट उलंघन ? आखिर जेट भारत में कौन से कानूनों की पालना करना चाहती है। भारत के या ...? जिस देश में कानूनों की पालना कराने वाली सरकार के नेता ही पूंजीपतियों के आगे दूम दबा कर बैठे हों तो क्या उम्मीद की जाये। आम नागरिक ने कानून तोडा होता तो शायद सालों तक चप्पलें रगड रहा होता ! आर्थिक मंदी की आड में जिस तरह से जेट ने अपने कर्मचारियों को निकाला है, उसकी आड लेकर अन्य कम्पनीयां भी ऐसा ही करेंगी! क्योंकि कानून तोडने के लिये बढावा भी तो सरकार और उसके नौकरशाह ही दे रहे हैं। इससे तो अच्छा है, सभी बडी कम्पनीयों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाये। आर्थिक सहायता देने के बजाये तो यह उपाय सबसे अच्छा होगा। इस तरह की हरकतों से साफ पता चल रहा है कि हमारी सरकार और उसके नौकरशाह अर्थव्यवस्था की स्थिति को छुपा रहे हैं अथवा जानबूझ कर आर्थिक मंदी पैदा करना चाहते हैं। यही कारण है कि बडी कम्पनीयां, बडे पूंजीपति, सटोरिये, कालाबाजारिये सक्रिय हैं। हमारे नेताओं का बयान कि, हमारी हर गतिविधियों पर नजर है, हमारे कानून इन परिस्थितियों से निपटने के लिये सक्षम है। तो भई कौनसे कानून तोडने वाले लोगों पर नजर है आपकी, कौन से चश्में से नजर है आपकी और कब नजर आयेंगे ये कानून तोडने वाले श्रीमान जी ? ऐसे अर्थशास्त्र और पूंजीपतियों के आगे दुम दबा कर बैठे रहने से तो अच्छा है आपातकाल ही लगादो, छोड दो अपनी कुर्सी क्या करोगे स्वीस बैक में जमा पडे काली कमाई के खरबों डालरों का ? परेशान जनता को अगर पूंजीपति और सरकार सहायता नहीं दे सकती तो क्या आवश्यकता है ऐसे तामझाम की और इतने सारे नौकरशाहों की ? बेशर्म नेताओं के मुश्कराते चेहरों, बेशर्म नौकरशाहों और अर्थशास्त्रीयों को कब लज्जा आयेगी इन स्वार्थियों को और कितना लूटोगे आम जनता को ? कहीं जनता ने लूटना शुरू कर दिया तो फिर भूल जाना इस देश के कानून और संविधान को, तब मत याद दिलाना जनता को संविधान,कानून आदि ! अगर सरकार और उसके नौकरशाह कानूनों और संविधान की पालना नहीं कराना चाहते तो आम जनता से भी उन्हें उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। क्योंकि कहावत है लातों के भूत बातों से नहीं.....?