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खरतरगच्छ संघ पदाधिकारियों की करतूतों से जैन समाज शर्मिन्दा!
सम्माननीय श्रीमती जतन कंवर गोलेछा! जैसाकि हम पिछली किश्त में भी लिख चुके हैं कि आप महिला हैं इस लिये हम तहेदिल से आपका सम्मान करते हैं। लेकिन इसके साथ-साथ आप जयपुर के गौरवशील समाज श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की महिला अध्यक्ष हैं। एक महिला को जब कोई समाज अपना आगेवान चुनता है तब वह देश के एक गौरवशाली समाज की श्रेणी में अग्रणीय हो जाता है और महिला आगेवान सम्मानीय! आज इसही गौरवशाली समाज श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की सम्माननीय अध्यक्ष से फिर पूछना चाहते हैं हम और सवाल के कुछ अंश पुन: दोहराना चाहते हैं, जो हमने पिछले सप्ताह आपसे इन्ही कालमों में पूछे थे कि क्या जैन संस्कृति, जैन धर्म के सिद्धान्तों, मर्यादाओं, मान्यताओं में कहीं भी यह उल्लेख है कि जयपुर के श्वेताम्बर समाज के श्रद्धेय आचार्यों, साधुओं-संतों-सतियों, यतियों की निर्वाण-अन्तिम संस्कार स्थली मौनबाडी में विधिवत प्राण प्रतिष्ठित जैनाचार्यों के चरणों, मूर्तियों को जैन संस्कृतिके सारे सिद्धान्तों, ऊसूलों को तिलांजली देकर हटा दिया जाये! उनके हैरीटेज श्रेणी में आनेवाले स्मारकों को नष्ट कर शहीद कर दिया जाये। आप बतायें, है कोई ऐसा ग्रंथ जिसमें ऐसा लिखा हो? हैं कोई ऐसे जैनाचार्य जो इस निकृष्ट हरकत को सही मानते हों? हमें बतायें उन धर्माचार्य जी का नाम और उनका बायोडाटा! ताकि हम उनसे भी इस गम्भीर मुद्दे पर गहन चर्चा कर सकें। हम इतिहास विषय में रूचि रखते हैं और गहन अध्ययन के बाद भी जैन संस्कृति के इतिहास में कहीं भी इस तरह की निकृष्ट हरकत का कहीं कोई उल्लेख दृष्टांन्त अभी तक तो नजर नहीं आया। आपकी या आपके सहयोगियों की नजर में कोई हो तो हमें बतायें? क्योंकि यह गम्भीरता से गहन अध्ययन का विषय है। जो उल्लेख आते हैं, वे विदेशी आक्रमणकारी आताताइयों या अन्य संस्कृति से जुडे विधर्मी लोगों द्वारा ही किये गये ऐसे निकृष्ट कृत्यों की दारूण स्मृति को मानस पटल पर एक काले पन्ने की तरह जरूर उकेरते हैं। देश में ऐसी कोई संस्कृति, धर्म, सम्प्रदाय, मत या पंथ नहीं है जिसमें उन्होंने उन्ही के दिगवन्त आचार्यों, गुरूओं को इस तरह अपमानित किया हो! अब हम आपसे, श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की अध्यक्ष के नाते साफ-साफ जवाब चाहते हैं कि ये जो चरणों, मूर्तियों के अपमान का कृत्य हुआ है, क्या वह आपकी अन्तरआत्मा और आपके विचारों से सही है और अगर सही है तो क्यों? आज हमें दु:ख और पीड़ा के साथ यह महसूस होने लगा है कि हमने एक महिला को सम्मानपूर्वक इस गौरवशाली जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष के रूप में आगेवान चुना और उन्ही के नेतृत्व में समाज दो हिस्सों में विभक्त होता नजर आ रहा है। एक हिस्सा आम भद्र, शालीन लोगों का, जिन्हें गर्व है कि वे श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के साधर्मी बंधु हैं। एक हिस्सा वो जो रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटीज के तहत पंजीकृत एवं देवस्थान विभाग से रजिस्टर्ड श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के सदस्य हैं, जिसके आगेवानों ने जैन संस्कृति, जैन धर्म के सारे सिद्धान्तों, मर्यादाओं, मान्यताओं का निर्दयता से हनन कर निकृष्ट तरीके से आचार्यों, संतों-साध्वियों के चरणों-मूर्तियों को हटा दिया। समाधी स्थलों को शहीद कर दिया है। कौन हैं वे लोग? जिन्होंने ऐसी हरकत की है। उनके चहरे अब बेनकाब हो ही जाने चाहिये। इसके लिये फैसला आपको करना है कि यह काम आप करेंगी या आम समाज के साधर्मी बंधु! हमने श्री जिन कुशल सूरि संदेश के माह अप्रेल 2009 में प्रकाशित चौथे अंक के पृष्ठ दो पर पंजीकृत संस्था श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के सूरमाओं की फोटो देखी। जो कटला मंदिर पर लगाये गये नये दरवाजे के आगे खडे होकर उन्होंने खिंचवाई। पत्रिका में जिनेन्द्र मेहता, सुभाष गोलेछा, गोपीचंद फौफलिया, पारस डागा, ज्ञानचंद छाजेड, तेज सिंह खजांची, राज कुमार बैगानी, चेतन बोहरा और वी.एस.भण्डारी के नाम साया हुये। पहिले तो हम पत्रिका के सम्पादक हरिचंद कोठारी और सह सम्पादक सोहन मल सुराना से पूछना चाहेंगे कि उपरोक्त उल्लेखित सज्जनों का क्या रोल रहा इस प्रकरण में? कितनों ने कोर्ट में गवाही दी, कितनों ने अदालतों के चक्कर लगाये? बतायें सम्पादक द्वय!अब हम आपके नेतृत्व में कार्यरत उपरोक्त फोटो खिंचाने वाले सूरमाओं और उनकी गाथा को श्री जिन कुशल सूरि संदेश में साया करने वाले परम विद्वान सम्पादक द्वय से भी आपके साथ-साथ पुन: सवाल कर लेते हैं कि श्वेताम्बर समाज के परम आदरणीय आचार्यों, साधु-संतों, साध्वियों-सतियों, यतियों के निर्वाण-अन्तिम संस्कार स्थली मौनबाडी में जैन संस्कृति के सारे सिद्धान्तों, मर्यादाओं, मान्यताओं को तिलांजली देकर हमारे पूज्यनीयों के समाधि स्थलों को नष्ट कर दिया गया, विधि सम्मत प्राण प्रतिष्ठित चरणों, मूर्तियों को अपमानजनक तरीके से हटा दिया गया और आपके नेतृत्व में इन सूरमाओं के कान में जूं तक नहीं रेंकी! कहां लापता हो गये थे ये सम्पादक द्वय ओर सारे सूरमा? क्यों नहीं आवाज उठाई इस निकृष्ट कृत्य के खिलाफ? क्यों इनकी जबान तालू में चिपक गई? खैर! कारण क्या हैं? ये सूरमा भी जानते हैं और सम्पादक द्वय भी! फोटो खिचवाने वाले सूरमा 23-24 मई शनिवार रात में कौन से बिल में घुस गये थे, जब मौनबाडी में पीछे पश्चिम दिशा में बने बरामदों में बनी हुई खिडकियों को पडौस के दूसरे समुदाय चंद लोगों ने राठौडी के बूते पर बंद कर दिया। अध्यक्षजी आपके परिजन, रिश्तेदार गौलेछा-पूंगलिया-सुराना परिवार तो ऊंचा रसूखदार परिवार है। क्यों नहीं रोक पाये पडौसी के गैर कानूनी कृत्य को?
जैसा कि हमने ऊपर लिखा है कि अब खरतरगच्छ संघ आपके नेतृत्व में दो समूहों में स्पष्ट रूप से बंट गया है, यह हकीकत इस प्रकरण से भी साबित हो जाती है कि समाज का कोई व्यक्ति विरोध करने नहीं पहुंचा! लेकिन अब इन सूरमाओं और सम्पादक द्वय से हमारा पहला सवाल है कि क्या वे इस प्रकरण में अपनी अवाज बुलंद करेगें? क्या वे रजिस्टर्ड संस्था के सदस्य होने के साथ-साथ आम साधर्मी बंधुओं की आवाज बनकर इस निकृष्ट हरकत को सुधरवा कर हमारे दिगवन्त आचार्यों, साधु-संतों, साध्वियों-सतियों, यतियों की आत्मा की शान्ति के लिये मेहनत-मशक्कत करेंगे? उनके चरणों, मूर्तियों को पुर्नस्थापित करवायेंगे! आपका साहस भरा कदम जैन संस्कृति के लिये मील का पत्थर होगा और अगर आपने कदम पीछे हटाये तो जैन संस्कृति के पतन के कारणों में आप भी एक तथ्य बनेंगे। अब हम आशा करते हैं कि माननीय अध्यक्ष जी गम्भीरता से आत्मचिंतन करेंगी, आत्म मंथन करेंगी और अपने परिजनों, रिश्तेदारों, कार्यकारिणी सहयोगियों को निरपेक्ष भाव से बिना किसी रागद्वेश, भय या लगाव के इस प्रकरण में जैन संस्कृति के सिद्धान्तों, आदर्शों, मर्यादाओं एवं मान्यताओं के अनुसरण में सही मार्गदर्शन देंगी। ऑब्जेक्ट साप्ताहिक जयपुर
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