भारतीय बाजारों में विदेशियों का अब कुल कितना निवेश है ?
प्रतिदिन मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार विदेशियों द्वारा बेचे जाने के आंकडे दिये जाते हैं, क्या यह निवेश किये जाने के बाद बेचा गया है अथवा अभी भी शोर्टसेल किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में अब और भी ज्यादा जरूरी हो गया है कि नियामक और सरकार के साथ-साथ कम्पनियां यह साफ करे कि वास्तव में विदेशियों का निवेश कितना है और स्थानीय निवेश कितना बचा है। साथ ही सरकारी कम्पनियों का निवेश कितना और कहां-कहां है ? इसकी भी सही और गम्भीरता के साथ आम जनता को जानकारी उपलब्ध करवाई जानी चाहिये। हमें हमारे देश में हो रही गतिविधियों की जानकारी लेने की आजादी तो है ही तो सरकार और निकायों को जानकारी देनी ही चाहिये ? जहां सूचना देने के लिये कम्पनियों को कहा जा रहा वहीं सरकार और उसके निकाय ही सूचनाऐं देने में आनाकानी क्यों कर रहे हैं। क्यों आनाकानी की जा रही है उन अधिकारियों पर कार्यवाही करने में जो कम्पनियों के बोर्ड में सरकारी प्रतिनिधी के रूप में गैरजुम्मेदारान और लापरवाह रहे, जैसे सत्यम के बोर्ड में रहे सरकारी अथवा निकायों के प्रतिनिधियों का मामला ? ऐसे कई बोर्ड हैं जो आज भी मिलीभगत के चलते जानकारियों में हेराफेरी करने के आरोप लगाये जा रहे हैं। शोर्टसेल पर लचर रूख भी सरकार के नियामकों और इसके अधिकारियों को शक के दायरे लाते हैं, लचर कार्यवाही पर पहले ही काफी आरोप आम जनता ने लगाये जो जगजाहिर हैं। रिलायंस जैसे ग्रुप पर ही जब आरोपों की जांच आज तक सरकार और उसके नियामक सही ठंग से नहीं करवा पाये और ना ही वह हिम्मत दिखा पाने में सक्षम हैं ऐसा वर्तमान परिस्थितियों से भी लग रहा है। आर पावर तो सभी को याद है। अन्तराष्ट्रीय बाजारों की आड लेकर इसे ज्यादा दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता ! 18 फरवरी, 2009