15 दिसम्बर, 2008
एक बार फिर वित्तीय संस्थानों ने जनता को मूर्ख बनाने कि कोशिश की है।
आम जनता को राहत देने के लिये ब्याज दर कम किये जाने थे। किये गये हैं नये होमलोन पर ब्याज दर कम। कहां दी गई आम जनता को राहत ? राहत के नाम पर मूर्ख बनाने की वही पुरानी नौटंकी वापस चालू ? वित्तीय सहयता देनी ही है तो पुराने लोन पर देते तो शायद कुछ राहत होती। वित्तमंत्री जी से हमारा आग्रह है कि आम जनता के सभी लोन माफ करने वालों को ही अब कोई पैकेज दिया जाना चाहिये। जनता को राहत नहीं तो कोई पैकेज भी नहीं ? जब जनता के पास पैसा ही नहीं है तो वह नया मकान, गाडी आदि तो खरीद ने वाले हैं नहीं ? पुराना लोन चुकाना अब जनता बन्द कर रही है ! वसूलने की हिम्मत है तो इनश्योरेंस कम्पनियों से वसूल कर बताऐं। खास बात यह है कि लोन नहीं चुकाने वालों तो यह बैंक/कम्पनियां परेशान कर रही है, सरकार से पैकेज ले रही है और लोन पर करवाये गये इनश्योरेंस से भी यह पैसा वसूल रहे हैं। इस सबके बाद भी हमारे वित्तमंत्री जी इन्हें पैकेज देने में लगे है। स्वंय वित्तमंत्री जी या कहें प्रधानमंत्री जी को दबाव बनाना पड रहा है इन पूंजीपति/बैंक और कम्पनियां पर, फिर भी कठोर निर्णय लेने में कोताही क्यों ? जनता का पैसा है अब जनता को ही खाना चाहिये, अब समय भी आ ही गया है। अब तक जनता रो रही थी अब रोयेंगे पूंजीपति/बैंक और कम्पनियां ?