परमाणु करार होने से क्या भेल, एनटीपीसी आदि कम्पनीयां बंद हो जायेगी ?
भौंपू चैनलों पर अपनी राय देने वाले तकनीकी सलाहकारों से सवाल ! परमाणु करार से देश की बिजली कम्पनीयों को यह फायदा होगा, वो फायदा होगा ? अब परमाणु करार भी होने जा रहा है, तो इनके शेयर्स क्यों गिर रहे हैं ? क्या अब इन सलाहकारों या कहें आपरेटरों को अब फायदा नजर नहीं आ रहा है इन पावर कम्पनीयों में ? या वे आम जनता को बेवकूफ बना रहे थे ! ताकि वे इन कम्पनीयों के मंहगे शेयर्स ले कर रखलें और आपरेटरों का स्टाक निकल जाये। कहीं शोर्टसेल कर इनके भाव तोडे जा रहे हों ताकि डर के मारे आम निवेशक इनसे दूर रहे या डर कर इनको नीचे भाव में बेच दे ताकि इन आपरेटरों की चांदी हो जाये। कुछ दिन पहले तो इन्हें फायदा नजर आ रहा था, अब क्या हुआ भाईलोगों ? कुछ सलाहकारों का और हमारे वित्तमंत्री का कहना है कि जितना विदेशी बेच रहे हैं, उससे ज्यादा दुसरे निवेश कर रहे हैं ? इस बात पर भी एक बडा सवाल ज्यादा खरीद रहे हैं तो फिर बाजार क्यों गिर रहा है, जब खपत ज्यादा है तो बाजार गिरना ही नहीं चाहिये ? इसका क्या मतलब निकाला जाये ? कई मतलब आपके भी दिमाग में घुम रहे होंगे। अमेरीका में भारी वित्त घोटाले के बाद हमें तो लगता है जल्द ही आपातकाल लगाया जा सकता है, ऐसी आशंका है। हमारे बुजुर्ग नेताओं को याद होगा इन्दिरा गांधी का आपातकाल करोडों डालर हजम अमेरीका के ? कुछ ऐसा ही होने वाला है अमेरीका में भी, अबकी बारी है अमेरीका की और हजम होगा रूपया ? लेकिन कुछ कम्पनीयों और बेंकों का ही ! लेकिन गिरने वाले शेयर्स में उन कम्पनियों का नाम क्यों जुड रहा है जिन्हें कोई नुकसान नहीं होने वाला है। ना ही कोई नुकसान हो रहा है। और तो और इन कम्पनियों में विदेशी निवेश भी ना के बराबर है ! कहीं अमेरीका की आड में हमारे देश में भी कोई बडा आर्थिक घोटाला तो नहीं हो रहा ! दुनिया की सब से मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में एक भारत की अर्थव्यवस्था को बताया जाता है। तो फिर इस अर्थव्यवस्था में लगे दिमक का इलाज क्यो नहीं हो रहा ? जब मार्केट में विदेशी निवेश बढ रहा है, तो इस मार्केट को गिराने वाले कौन है, इनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है ? क्या इसके लिये भी पोटा जैसा नया कानून चाहिये ? नही तो पुराने कानून किसके लिये बनाये गये हैं, बाजार गिराने वालों के लिये या आम जनता के लिये ? आखिर यह देश है किसका यहां रहने वालों का या विदेशी मेहमानों का ? 34 साल से आर्थिक गुलामी से आजादी मिलने की बात करने वालों से फिर एक सवाल आजादी मिलने से देश के बाजारों में मंदी आती है क्या और गुलाम रहने पर तेजी ? कहीं आपालकाल लगा कर सारे आर्थिक घोटालों को दबाने कि तैयारी तो नहीं चल रही है। जैसे अमेरीका में चल रही है। देश में बने कानूनो का देश हित में उपयोग नहीं करना, देश के नागरिकों को लूटने के लिये छोड देना, लूटने वालों को छुट देना आदि से तो अब लगने लगा है की, बडे आर्थिक घोटाले, डूबती अर्थव्यवस्था, सम्भावित आपातकाल आदि-आदि !!!!!!!