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सेबी और सरकार मौन क्यों है ? क्या अर्थ व्यवस्था डूबने वाली है ?
क्योंकि डूबते जहाज से सबसे पहले चूहे ही तो भागते हैं !

फिर वही रटा रटाया सवाल, हमारे बाजार में विदेशियों का कुल कितना पैसा लगा है ! मात्र 5 प्रतिशत के लगभग ! बाकी का तो इस देश के नागरिकों है। क्या हमारी अर्थव्यवस्था इस 5 प्रतिशत के पिछे चलती है। लगता तो यही है, आज की गिरावट हो या लगातार हमारे भोंपू न्यूज चैनल से मिलने वाले संकेतों से तो साफ जाहिर हो जाता है कि हमारी अर्थ व्यवस्था खत्म होने वाली है। हमारे पूर्व लेखों में व्यक्ति कि गई आशंकाओं को भी भारत की गिरती हुई मजबूत अर्थ व्यवस्था और मार्केट समर्थन कर रहे हैं। चुप हैं तो हमारे वित्तमंत्री, सेबी और सरकार ? बेचारे बोलें भी तो क्या ? चंद पूंजीपति जो पिछे पडे हैं इनके, हमारी अर्थ व्यवस्था को दिमक की तरह खाने वाले ये चंद पूंजीपतियों के दबाव के कारण ही तो हमारी सरकारें, प्रशासन, सेबी जैसे संस्थान के नेताओं, अधिकारियों को उठापटक करने वाले नहीं दिख रहे। सेबी को लगता है अब शर्म ही आ रही होगी एक्सचेंजों से आंकडे मांगने में या वह इन आपरेटरों के आंकडे लेकर कार्यवाही करने से कतरा रही है। अगर नही तो हमारी अर्थ व्यवस्था डूबने वाली है, यह भी नही तो और क्या कारण है इस तरह चुप रहने का एवं सटोरियों का पक्ष लेने का ? कोई न कोई बडा आर्थिक घोटाला जरूर है ? मरेंगे तो बेचारे निवेशक और मारने वाले हैं सरकार, चंद पूजीपतियों के साथ सरकारी संस्थान जो दिखावे के लिये निवेशकों की रक्षा के लिये हैं। एक माह के मार्केट को देखा जाये तो स्पष्ट संकेत हैं डूबती अर्थ व्यवस्था का ? थाम सको तो थाम लो अपने नुकसान को ? क्यों कि सरकार और उसके संस्थान तो आंख बंद कर सो रहे हैं ! देखने सुनने वाला कोई है ही नहीं ! आप भरोसे में न ....................?
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